Sunday 27 February 2011

waqt lohe ke chane hue

एक दूजे पर तने हुए ,
ऊँचे मकाँ हैं बने हुए |

नहीं खुदा भी मेरी  सुनता ,
जब से तुम अनमने हुए |

ऐ रकीब ! मुझे दोस्त बना ले ,
क्यूँ जिद पर हो ठने हुए |

दोष कहाँ दर्पण  का - जब हैं ,
चेहरे धूल से सने हुए |

सुबह , दोपहर, शामो - शब ,
वक़्त लोहे के चने हुए |

No comments:

Post a Comment