एक दूजे पर तने हुए ,
ऊँचे मकाँ हैं बने हुए |
नहीं खुदा भी मेरी सुनता ,
जब से तुम अनमने हुए |
ऐ रकीब ! मुझे दोस्त बना ले ,
क्यूँ जिद पर हो ठने हुए |
दोष कहाँ दर्पण का - जब हैं ,
चेहरे धूल से सने हुए |
सुबह , दोपहर, शामो - शब ,
वक़्त लोहे के चने हुए |
No comments:
Post a Comment